कक्षा 12 भूगोल अध्याय 12 पर्यावरणीय समस्याएं एवं समाधान
पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि और आवरण से हुआ हैं जिसका अर्थ होता है – बाहरी आवरण। अर्थात हमारे चारों ओर जो प्राकृतिक,भौतिक, व सामाजिक आवरण है वही पर्यावरण हैं।
परिभाषाएं-
सी.सी.पाई के अनुसार “ मनुष्य एक विशेष स्थान पर विशेष समय पर जिन सम्पूर्ण परिस्थितियों से घिरा हुआ है इसे पर्यावरण कहा जाता है।“
पर्यावरणीय समस्याएं-
प्रारंभिक अवस्था में मानव प्रकृति पर निर्भर था तथा प्रकृति के साथ उसके संबंध बहुत मधुर थे लेकिन वर्तमान समय में मनुष्य की भोगवादी प्रवृति एवं प्रकृति के साथ शोषण की धारणा ने मानव और प्रकृति के संबंधों को बिगाड़ दिया है परिणाम स्वरूप पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न हो गई है। जैसे प्राकृतिक प्रकोप भूकंप ज्वालामुखी अतिवृष्टि अनावृष्टि सूखा जैसी आपदाएं बढ़ रही है इसके अलावा मौसम परिवर्तन, अम्लीय वर्षा, ग्रीन हाउस प्रभाव, ओजोन परत क्षरण, बंजर भूमि, प्रदूषण, मरुस्थलीकरण जैसी अनेक पर्यावरमणीय समस्याएं खड़ी हो रही है जिससे संपूर्ण मानव जगत प्रभावित हो रहा है।
पर्यावरणीय प्रदूषण–
प्रदूषण अंग्रेजी के शब्द POLLUTION से बना है जो मूल रुप से लेटिन भाषा के शब्द POLLUTUS से बना है जिसका अर्थ दूषित करना होता है।
ईपी ओडम के अनुसार–
“वायु, जल एवं मृदा के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में होने वाला ऐसा अवांछित परिवर्तन जो मनुष्य के साथ ही संपूर्ण परिवेश के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक तत्वों को हानि पहुंचाता है प्रदूषण कहते हैं।“
ऐसे अवांछनीय पदार्थ जो पर्यावरण के किसी भी मूल तत्व में अपनी उपस्थिति से उसे परिवर्तित कर देते हैं या प्रदूषण फैलाते हैं, प्रदूषक कहलाते हैं।
प्रदूषण के प्रकार–
जैवमंडल के प्राकृतिक पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले प्रदूषकों की प्रकृति के आधार पर प्रदूषण मुख्यत: निम्न प्रकार का होता है–
- वायु प्रदूषण
- जल प्रदूषण
- ध्वनि प्रदूषण
- मृदा प्रदूषण
- वाहन प्रदूषण
- विकिरण प्रदूषण
- तापीय प्रदूषण
- औद्योगिक प्रदूषण
- कूड़े कचरे से प्रदूषण
- समुद्री प्रदूषण
- घरेलू अपशिष्ट के कारण प्रदूषण
- अन्य कारणों से प्रदूषण
वायु प्रदूषण–
वायु गैसों का एक मिश्रण है जिसमें विभिन्न गैसें एक निश्चित अनुपात में पाई जाती है जिनमें मुख्यत नाइट्रोजन 78% ऑक्सीजन 21% आर्गन .93% , कार्बन डाइऑक्साइड 0.03 % आदि। इस अनुपात में जरा सा भी परिवर्तन संपूर्ण व्यवस्था को प्रभावित करता है।
वायु प्रदूषण के प्रकार–
वायु प्रदूषण स्त्रोत के आधार पर दो भागों में बांटा गया है–
- प्राकृतिक प्रदूषण
- अप्राकृतिक प्रदूषण
प्राकृतिक प्रदूषण– यह प्रकृति की देन है ज्वालामुखी उदगार, धूलभरी आंधीयाँ तूफान ,दावानल, पहाड़ों का झड़ना आदि प्राकृतिक क्रियाओं से प्रदूषण होता है।
अप्राकृतिक प्रदूषण – वायु को प्रदूषित करने में सबसे बड़ा योगदान स्वयं मानव का ही है
- घरों में जलाने वाला इंजन
- उद्योग
- परिवहन साधन
- धूम्रपान
- रसायनों का उपयोग
- रेडियोधर्मिता
जैसे पदार्थों से सर्वाधिक प्रदूषण हो रहा है
वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव
- मानवीय स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव
- प्राकृतिक वनस्पति पर प्रतिकूल प्रभाव
- जीव जंतु एवं कीटों के अस्तित्व पर संकट
- जलवायु परिवर्तन, मौसम पर प्रभाव
- ओजोन परत क्षरण तथा ग्रीन हाउस प्रभाव जैसी समस्याएं बढना
- नगरों एवं महानगर क्षेत्रों में कोहरे के गुम्बद बन जाना।
वायु प्रदूषण के नियंत्रण हेतु उपाय-
- वृक्षारोपण एवं हरित पट्टी का विकास करना।
- वाहनों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण पर नियंत्रण।
- पेट्रोल व डीजल के स्थान पर वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का उपयोग।
- वृक्षों के कटाई पर प्रतिबंध तथा निर्धूम चूलों का उपयोग करना।
- ईट भट्ठा व बर्तन बनाने के उद्योगों को शहरों से बाहर स्थापित किया जाए।
- वृक्षारोपण हेतु व्यक्तियों को प्रोत्साहित करना।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने हेतु सरकारी प्रयास–
- 24 जून 2016 को राष्ट्रीय वन नीति केंद्र सरकार द्वारा तैयार किया गया जिसके अंतर्गत हरित कर लगाने की सिफारिश की गई है
- हरित राजमार्ग नीति 2015 द्वारा सड़कों के दोनों ओर वृक्ष लगाना अनिवार्य किया गया है।
- वाहन प्रदूषण को रोकने हेतु बीएस (भारत स्टेज) मानक लागू किये गये-
जैसे 1 अप्रैल 2017 से BS-4 तथा 1 अप्रेल 2020 से BS-6 लागू किया गया।
जल प्रदूषण
जल के भौतिक रासायनिक और जैविक गुणों में होने वाला अवांछित परिवर्तन जिनसे जल मानव व समस्त जीवों के लिए हानिकारक हो जाये। जल प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषित जल से मानव में हैजा, पीलिया और पेट के रोग हो जाते हैं और जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है।
जल प्रदूषण के स्रोत-–
जल प्रदूषण के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं–
- घरेलू वाहित जल
- कृषि अपशिष्ट
- औद्योगिक अपशिष्ट
- तापीय दूषित जल
- वायुमंडलीय प्रदुषण
- रेडियो धर्मीअपशिष्ट
- खनिज तेल
जल प्रदूषण के दुष्परिणाम–
- प्रदूषित जल के उपयोग से विभिन्न प्रकार की बीमारियां फैलती हैं जैसे हैजा पीलिया व पेट के रोग।
- वर्तमान में मनुष्य के कुल रोगों में से 65% रोग जल प्रदूषण के कारण हो रहे हैं।
- जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है।
- यूएनओ की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में प्रतिदिन लगभग 2300 लोग प्रदूषित जल के उपयोग की वजह से मर जाते हैं।
- पिछले 30-40 वर्षों में सागरीय जल प्रदूषण के कारण लगभग 40% सागरीय जीव कम हो गए हैं।
जल प्रदूषण से बचाव के उपाय–
- सभी नगरों में जल मल के निस्तारण हेतु सीवर शोधन संयंत्र की स्थापना की जाए।
- जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए।
- औद्योगिक अपशिष्ट युक्त जल को उपचारित कर पुन: प्रयोग में लिया जाए।
- नदियों व जलाशयों में मृत पशु व अपशिष्ट डालने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए।
- जल को शुद्ध करने वाली जलीय जीवों का संरक्षण किया जाना चाहिए।
- जल प्रदूषण को रोकने हेतु जन जागरूकता लाई जाए।
नमामि गंगे प्रोजेक्ट-
भारत सरकार द्वारा गंगा नदी को साफ सुथरा करने के उद्देश्य से इसके किनारे वृक्षारोपण एवं घाटों का आधुनिकीकरण किया जा रहा है।
ध्वनि प्रदूषण–
जब ध्वनि एक निश्चित स्तर से अधिक हो जाती है और मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, तो उसे ध्वनि प्रदूषण कहा जाता है। सामान्यत 80 डेसिबल से अधिक की सभी धनिया ध्वनि प्रदूषण के अंतर्गत आती है।
ध्वनि प्रदूषण के स्रोत–
- परिवहन के साधन
- स्पीकर ध्वनि विस्तारक यंत्र
- उद्योगों से निकलने वाली ध्वनि
- वायुयान तथा जेट विमान की ध्वनि
ध्वनि प्रदूषण से होने वाली हानियां–
- मानव मस्तिष्क पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- मनुष्य का स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है।
- ध्वनि प्रदूषण से बहरापन और अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से स्थाई रूप से श्रवण शक्ति समाप्त हो जाती है।
भूमि प्रदूषण–
प्राकृतिक एवं मानवीय क्रियाओं से मिट्टी की गुणवत्ता में होने वाली कमी ही भूमि प्रदूषण कहलाती है। भूमि प्रदूषण से भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
भूमि प्रदूषण के मुख्य कारण–
- प्रदूषित जल के उपयोग से
- रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से जैसे -पंजाब में
- औद्योगिक अपशिष्ट जैसे- चीन में
- नगरों व महानगरों से निकलने वाला अपशिष्ट
मृदा प्रदूषण के नुकसान–
- मिट्टी का उपजाऊपन कम हो जाता है
- कृषि योग्य भूमि में लगातार कमी आती
- विभिन्न प्रकार की बीमारियां फैलती हैं
- भूमि प्रदूषण अन्य पर्यावरणीय प्रदूषणों को जन्म देता है
अम्लीय वर्षा
ऐसी वर्षा जिसके जल में सल्फर डाइ- ऑक्साइड, नाइट्रिक आक्साइड,कार्बन डाइ-आक्साइड घुली रहती है।अम्लीय वर्षा कहलाती हैं।अम्लीय वर्षा के जल का ph 5 से 2.5 तक होता है।
अम्लीय वर्षा के कारण-
अम्लीय वर्षा के मुख्य कारण वे हैं जिनकी वजह से वायुमण्डल में NO2, SO2, NO तथा CO आदि निर्मुक्त होती हैं। SO2 वायुमण्डल की जलवाष्प से क्रिया करके H2SO4 का निर्माण करती है।
- विभिन्न कारणों से वायुमण्डल में छोडा गया धुँआ।
- ताप शक्ति ग्रह जहाँ भारी मात्रा में कोयला जलाया जाता है
- खनिज तेल शोधनशालाएँ
- स्वचालित वाहन
- जीवाश्म ईंधनों का दहन
अम्लीय वर्षा का प्रभाव-
- मिट्टी की उत्पादकता का कम हो जाना।
- वनो की वृद्धि पर विपरीत प्रभाव।
- जलीय जीवों पर प्रतिकूल प्रभाव। झील कातिल(LAKE KILLER)
- विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ फैलना सांस, त्वचा, व आंखों में जलन
- भवनों का क्षरण- स्टोन कैंसर , ताजमहल को नुकसान।
- दूरस्थ स्थानों तक प्रभाव
संभावित समाधान-
- SO2 व NO2 के उत्पादन पर नियन्त्रण-
- उर्जा के वैकल्पिक स्रोतों- सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा को बढावा
- सार्वजनिक वाहनो का अधिक प्रयोग ,व्यक्तिगत साधनों का उपयोग कम करना।
- जल व मिट्टी की अम्लता कम करने के लिए चूना का उपयोग करना।
- उद्योगों से निकलने वाली गैसों पर प्रभावी नियन्त्रण
ग्रीन हाउस प्रभाव
वायुमंडल में मौजूद ग्रीन हाउस गैसों की वजह से पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है इसे ही ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो पृथ्वी के वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, जलवाष्प नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और मीथेन की उपस्थिति के कारण सूर्य से आने वाली लघु तरंगे तो पृथ्वी तक पहुंच पाती हैं लेकिन पृथ्वी से निकलने वाली दीर्घ तरंगे वापस वायुमंडल में नहीं जा पाती हैं। इस वजह से पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है। तापमान बढ़ने की यह प्रक्रिया ही ग्रीन हाउस प्रभाव या हरित गृह प्रभाव कहलाती है।
हरित गृह प्रभाव के कारण—
वे सभी कारण जिनसे वायुमंडल में CO2, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, और मीथेन गैस निर्मुक्त होती है ,हरित गृह प्रभाव के लिए जिम्मेदार हैं जैसे-–
- औद्योगिकरण
- वनों का विनाश
- जीवाश्म ईंधन का दहन
- रेफ्रिजरेटर तथा एयर कंडीशनर्स का प्रयोग
हरित गृह प्रभाव के दुष्परिणाम–
- तापमान में वृद्धि
- वर्षा मे वृद्धि
- समुद्र के जलस्तर में वृद्धि
- वनस्पति क्षेत्रों में परिवर्तन
- बीमारियों के स्तर में वृद्धि
- जैव विविधता को खतरा
हरित गृह प्रभाव कम करने के उपाय–
- जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करना
- वृक्षारोपण करना
- क्लोरोफ्लोरोकार्बन के प्रयोग को रोकना
ओजोन परत क्षरण–
समुद्र तल से 30 से 80 किलोमीटर ऊंचाई के वायुमंडलीय भाग को ओजोन मण्डल कहते हैं। इस मंडल में ओजोन गैस पाई जाती है। यह गैस वस्तुतः एक रक्षा कवच के रूप में कार्य करती है और उच्च ऊर्जा युक्त पराबैगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है। ओजोन परत में ओजोन गैस की सांद्रता में कमी के कारण विशालकाय क्षेत्र में ओजोन रहित छोटे-छोटे क्षेत्रों को ओजोन छिद्र कहा जाता है।
ओजोन परत के क्षरण के कारण–
ओजोन गैस की अल्पता तथा विनाश के मुख्य दोषी कारक हैलोजनिक गैसे हैं। क्लोरोफ्लोरोकार्बन क्लोरीन, ब्रोमीन, मिथाइल क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड इत्यादि। समताप मंडल में क्लोरीन परमाणु के विसरण से ओजोन की कमी होती है। क्लोरीन का एक परमाणु 100000 ओजोन के अणुओं को नष्ट करता है। यह क्लोरीन परमाणु क्लोरोफ्लोरो कार्बन के विघटन से बनते हैं।
ओजोन परत क्षरण के प्रभाव–
- ओजोन परत की क्षती से त्वचा का कैंसर और मोतियाबिंद जैसे रोग होते हैं।
- पराबैंगनी किरणों के कारण पादप प्लावक नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण समुद्री खाद्य श्रंखला पर विपरीत प्रभाव पड़ता है
- फसली चक्र बिगड़ रहा है।
- पराबैंगनी किरणों से रोग प्रतिरोधक क्षमता पर कुप्रभाव पड़ता है।
- अधिक तापमान की वजह से लोगों का शारीरिक व मानसिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।
ओजोन परत को बचाने हेतु वैश्विक प्रयास–
- 2 मार्च 1990 को लंदन में ओजोन परत सुरक्षा नामक एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को अपनाया गया
- फ्रेऑन को प्रतिबंधित किया गया
- अमेरिका द्वारा चलाए जाने वाले कान्कोर्ड वायुयान को प्रतिबंधित किया गया।
- ओजोन परत के बारे में जन जागरूकता लाने के लिए प्रतिवर्ष 16 सितंबर को ओजोन परत सुरक्षा दिवस मनाया जाता है
thanks