RBSE CLAS 12 GEOGRAPHY CH-7 SECONDARY OCCUPATION

कक्षा 12 भूगोल अध्याय -9 द्वितीयक व्यवसाय

कक्षा 12 भूगोल

अध्याय 9

द्वितीयक व्यवसाय

ऐसे व्यवसाय जिनमें प्राकृतिक व्यवसायों से प्राप्त उत्पादों को परिष्कृत व परिवर्तिक कर अधिक मूल्यवान व अधिक उपयोगी बनाया जाता है द्वितीय व्यवसाय कहलाते हैं। इसके अंतर्गत उद्योग, निर्माण, विनिर्माण व प्रसंस्करण सम्मिलित हैं।

अध्ययन की दृष्टि से द्वितीयक व्यवसाय को निम्नलिखित 10 समूहों में बांटा जा सकता है

  • इंजीनियरिंग उद्योग
  • निर्माण उद्योग
  • इलेक्ट्रॉनिक उद्योग
  • रासायनिक उद्योग
  • शक्ति उद्योग
  • वस्त्र उद्योग
  • भोजन व पेयजल पदार्थ उद्योग
  • धातु कर्म उद्योग
  • प्लास्टिक उद्योग
  • परिवहन व संचार उद्योग

विनिर्माण उद्योग–

इसके अंतर्गत प्राथमिक व्यवसाय से प्राप्त उत्पादों को शारीरिक व मशीनी ताकतों से एक निश्चित आकार में ढाल दिया जाता है तथा उसे अधिक मूल्यवान और अधिक उपयोगी बना दिया जाता है। जैसे मिट्टी से बर्तन बनाना, खिलौने बनाना लोहा-ईस्पात से बड़ी मशीनें, जलयान आदि बनाना, लकड़ी से कागज बनाना, कपास से धागा बनाकर वस्त्र बनाना।

औद्योगिक विकास देश की आर्थिक संपन्नता का मापदंड भी माना जाता है।

उद्योगों की अवस्थी को प्रभावित करने वाले कारक–

कौन से स्थानों पर उद्योग स्थापित करना आर्थिक दृष्टि से लाभदायक होगा इसे प्रभावित करने वाले कुछ कारक होते हैं जिन्हें जिन्हें उद्योगों की अवस्थिति को प्रभावित करने वाले कारक का जाता है ये कारक निम्नलिखित हैं–

  • कच्चा माल
  • शक्ति के साधन
  • संचार व परिवहन के साधन
  • बाजार
  • कुशल श्रमिक
  • पूंजी
  • जलापूर्ति
  • जलवायु
  • उच्च तकनीक
  • सरकारी नीतियां
  • अन्य कारक

कच्चा माल–

जिन उद्योगों का कच्चा माल भारी, सस्ता व शीघ्र खराब होने वाला, तथा वजन ह्रास वाला होता है तो ऐसे उद्योग कच्चे माल के स्रोत के निकट स्थापित किए जाते हैं।

जैसे चीनी उद्योग, लोहा इस्पात उद्योग

जिन उद्योगों का कच्चा माल निर्माण के दौरान वजन ह्रास नहीं होता है उन्हें बाजार के निकट  भी स्थापित किया जा सकता है।

जैसे सूती वस्त्र उद्योग, घड़ी उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक उद्योग।

शक्ति के साधन–

जिन उद्योगों को अधिक शक्ति या ऊर्जा की आवश्यकता होती है  वे शक्ति के साधनों के निकट स्थापित किए जाने चाहिए। जैसे लोहा इस्पात उद्योग कोयला क्षेत्र व कोयला खदानों के पास स्थित होना चाहिए। एल्युमिनियम उद्योग सस्ते जल विद्युत उत्पादक क्षेत्रों में स्थापित किए गए हैं।

परिवहन एवं संचार के साधन–

कच्चे माल को कारखानों तक लाने व तैयार माल को बाजार तक पहुंचाने के लिए तीव्र, सक्षम परिवहन सुविधाएं औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक हैं। इसी प्रकार संचार के साधन जैसे डाक तार टेलीफोन ईमेल इंटरनेट आदि की  भी औद्योगिक विकास को बढ़ावा देती है।

बाजार– उद्योगों की स्थापना में बाजार की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण होती है बाजार से तात्पर्य उस क्षेत्र में तैयार माल की मांग तथा वहाँ के निवासियों की वस्तुओं को खरीदने की क्षमता से है।

जैसे यूरोप, उत्तरी अमेरिका, जापान व आस्ट्रेलिया वैश्विक बाजार हैं क्योंकि इन प्रदेशों के लोगों की क्रय क्षमता अधिक है।

कुशल श्रमिक–

उद्योगों में काम करने के लिए कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है हालांकि वर्तमान में उद्योगों का यंत्रीकरण हुआ है लेकिन फिर भी कुशल श्रमिक की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है

पूंजी–

किसी भी उद्योग की स्थापना एवं संचालन के लिए पर्याप्त पूंजी होना अनिवार्य है। जिन देशों में पर्याप्त पूंजी होती है वहां उद्योग धंधे विकसित हो जाते हैं और विकासशील देशों में जहां पूंजी की कमी रहती है उद्योग धंधे आशानुरूप विकसित नहीं हो पाते हैं।

जलापूर्ति–

जिन उद्योगों में जल की अधिक आवश्यकता होती है वह जल स्रोतों के निकट ही स्थापित किए जाते हैं इसलिए जलापूर्ति भी उद्योगों के विकास को प्रभावित करता है। लोहा इस्पात उद्योग, वस्त्र उद्योग, रासायनिक उद्योग, कागज उद्योग, चमड़ा उद्योग, जल विद्युत गृह आदि ऐसे उद्योग हैं जो जल के बिना विकसित नहीं हो सकते हैं।

जलवायु–

जलवायु भी उद्योगों की अवस्थित को प्रभावित करती है जैसे सूती वस्त्र के लिए आर्द्र जलवायु।  सिनेमा उद्योग के लिए मेघ रहित आकाश व सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है उपयुक्त व स्वास्थ्य वर्धक जलवायु में श्रमिकों की कार्य क्षमता भी बढ़ जाती है।

उच्च तकनीक–

उच्च तकनीक के द्वारा विनिर्माण की गुणवत्ता को नियंत्रित किया जाता है और पर्यावरण मानकों का भी ध्यान रखा जाता है।

सरकारी नीतियां–

सरकार द्वारा औद्योगिक नीतियां बनाई जाती हैं जो उद्योगों के विकास को प्रभावित करती हैं सरकार चाहे तो टैक्स में छूट देकर अथवा अन्य सुविधाएं देकर उद्योगों का विकास कर सकती है उद्योगों का राष्ट्रीयकरण करने पर विदेशी कंपनियां उद्योग  स्थापित करना नहीं चाहती हैं।

अन्य कारक-

सस्ती भूमि, राजनीतिक स्थिरता, बैंकिंग और बीमा की सुविधा आदि अन्य महत्वपूर्ण कारक हैं जो उद्योगों की अवस्थति को प्रभावित करते हैं

निर्माण उद्योगों का वर्गीकरण

उद्योग–

ऐसी आर्थिक गतिविधियां जिनमें वस्तुओं का उत्पादन, खनिजों का निष्कर्षण और सेवाओं की व्यवस्था की जाती है उद्योग कहलाती हैं।

वर्गीकरण— किसी गुण विशेष के आधार पर व्यापक अवधारणा को छोटे-छोटे समूह में (वर्गों में) बांटने की क्रिया वर्गीकरण कहलाती है। उद्योगों का वर्गीकरण सामान्यता निम्नलिखित आधारों पर किया गया है

  • आकार के आधार पर
  • कच्चे माल के आधार पर
  • स्वामित्व के आधार पर

आकार के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण–

उद्योग के आकार से तात्पर्य उसमें निवेशित पूंजी, नियोजित लोगों की संख्या और उत्पादन की मात्रा से है। इस आधार पर उद्योग तीन प्रकार के होते हैं-

  • कुटीर उद्योग
  • लघु उद्योग
  • वृहत उद्योग

कुटीर उद्योग– ऐसे उद्योग जिनमें परिवार के सदस्यों द्वारा घर पर ही कम पूंजी निवेश और साधारण औजारों द्वारा स्थानीय कच्चे माल से वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। जिनका निजी उपयोग के बाद शेष बचे तैयार माल को स्थानीय बाजार में बेच दिया जाता है। ऐसे उद्योग कुटीर उद्योग या घरेलू उद्योग कहलाते हैं। यह निर्माण की सबसे छोटी इकाई है। उदाहरण

खाद्य पदार्थ- आचार, मुरब्बा, चटाईया, बर्तन, लोहार, सुनार, नाई, कुम्हार आदि के कार्य।

लघु उद्योग–

ये छोटे पैमाने के उद्योग हैं इनमें परिवार के सदस्यों के अलावा वेतनिक कुशल व कुशल श्रमिकों एवं मशीनों का प्रयोग कर स्थानीय कच्चे माल से वस्तुएं निर्मित की जाती है। जैसे कपड़े, कागज का सामान, खिलौने, मिट्टी के बर्तन, फर्नीचर डेयरी उत्पाद, खाने के तेल निकालने का उद्योग, धातु के बर्तन, चमड़े का सामान आदि।

बड़े पैमाने के उद्योग–

ऐसे उद्योग जिनमें उच्च पूंजी निवेश तथा उच्च प्रौद्योगिकी व शक्ति के साधनों के द्वारा व्यापक स्तर पर उत्पादन होता है तो ऐसे उद्योग वृहत उद्योग कहलाते है। इन उद्योगों का सूत्रपात औद्योगिक क्रांति के बाद हुआ। उदाहरण–

सीमेंट उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग, पेट्रो रसायन उद्योग, लोहा इस्पात उद्योग

इस प्रकार के उद्योगों की शुरुआत ग्रेट ब्रिटेन, पश्चिमी यूरोप, रूस, जापान आदि से हुई है। वर्तमान में विश्व के सभी भागों में इनका विस्तार हो गया है।

2 कच्चे माल पर आधारित उद्योग–

कच्चे माल के प्राप्ति स्रोत के आधार पर उद्योगों को 5 भागों में बांटा गया है जो इस प्रकार से हैं–

कृषि आधारित उद्योग-

ऐसे उद्योग जिनमें कच्चे माल की प्राप्ति कृषि उत्पादों से होती है कृषि आधारित उद्योग कहलाते हैं जैसे चीनी उद्योग कपड़ा उद्योग पेय पदार्थ, चाय भोजन प्रसंस्करण वनस्पति घी, रबड़ उद्योग आदि

खनिज आधारित उद्योग-

ऐसे उद्योग जिनमें खनिज पदार्थ कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होते हैं खनिज आधारित उद्योग कहलाते हैं जैसे- लोहा इस्पात उद्योग, मशीन व औजार निर्माण उद्योग, एलुमिनियम व तांबा उद्योग, सीमेंट उद्योग, ग्रेनाइट, संगमरमर, प्रपत्र उद्योग

रसायन आधारित उद्योग-

ऐसे उद्योग जिनमें प्राकृतिक रासायनिक खनिजों का उपयोग कच्चे माल के रूप में किया जाता है, रसायन आधारित उद्योग कहलाते हैं। जैसे- रासायनिक उर्वरक, पेंट वार्निश, प्लास्टिक, औषधि कृत्रिम रेशा बनाना व पेट्रोकेमिकल उद्योग आदी।

वनोत्पाद आधारित उद्योग-

ऐसे उद्योग जिनमें वनों से प्राप्त उत्पादों को कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किया जाता है वनोत्पाद आधारित उद्योग कहलाते हैं। जैसे कागज व लुग्दी लोग उद्योग, फर्नीचर उद्योग, दियासलाई उद्योग, लाख उद्योग आदी।

पशु आधारित उद्योग- ऐसे उद्योग जिनमें पशु उत्पाद कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होते हैं पशु आधारित कहलाते हैं। जैसे चमड़ा उद्योग, ऊनी वस्त्र उद्योग।

स्वामित्व के आधार पर उद्योग-

उद्योग का स्वामी कौन है अर्थात उसका नियंत्रण व निर्देशन करने वाले कौन है इस आधार पर उद्योगों को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा गया है-

  • सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग
  • निजी क्षेत्र के उद्योग
  • संयुक्त क्षेत्र के उद्योग

सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग-

जिन उद्योगों का स्वामित्व और संचालन सरकार के पास होता है वे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं। साम्यवादी देशों में अधिकांश उद्योग सार्वजनिक प्रकार के होते हैं। भारत में बहुत सारे उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के अधीन हैं। जैसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड।

निजी क्षेत्र के उद्योग-

ऐसे उद्योग जिनका स्वामित्व व संचालन किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के पास होता है, निजी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वाले देशों में अधिकांश उद्योग निजी क्षेत्र में ही होते हैं।

संयुक्त क्षेत्र के उद्योग–

ऐसे उद्योग जिनका स्वामित्व और संचालन सरकार व निजी व्यक्तियों के समूह द्वारा किया जाता है संयुक्त क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं जैसे मारुति उद्योग लिमिटेड।

विश्व के प्रमुख निर्माण उद्योग

वर्तमान में विश्व में सैकड़ों उद्योग हैं लेकिन यहां हम दो प्रमुख उद्योगों लौह इस्पात उद्योग व वस्त्र उद्योग का विस्तार अध्ययन करेंगे।

लोहा इस्पात उद्योग–

वर्तमान युग इस्पात युग है, लोहा इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है क्योंकि इसके उत्पाद अन्य उद्योगों में कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त किए जाते हैं। इसलिए इस उद्योग को धुरी उद्योग भी कहा जाता है।

लोहा-इस्पात निर्माण की विधियां–

लोहा इस्पात बनाने की तीन विधियां प्रचलन में है–

  • बेसिमर विधि
  • उन्मुक्त विधि(वात्या भट्टी विधि)
  • विद्युत भट्टी विधि

लोह इस्पात बनाने के लिए लोहा अयस्क को इन भट्टियों में कोक व चूना पत्थर के साथ पिघलाया जाता है। पिघला हुआ लोहा जब बाहर निकल कर ठंडा होता है तो उसे कच्चा लोहा कहते हैं। इसी कच्चे लोहे में मैग्नीज मिलाकर इस्पात बनाया जाता है।

लौह इस्पात उद्योग का स्थानीयकरण—

सामान्य रूप से लोहा इस्पात उद्योग के केंद्र कच्चे माल के स्रोतों के समीप ही विकसित हुए हैं, क्योकि यह एक वजन ह्रास वाला उद्योग है एक टन लोहा-इस्पात बनाने के लिए 4 टन कच्चे माल की जरूरत पडती है। लेकिन वर्तमान में  यह बंदरगाहों के समीप भी लोहा इस्पात उद्योग स्थापित किए जा रहे हैं ताकि आयात निर्यात में सुविधा मिल सके।

लोहा इस्पात उद्योग का विश्व वितरण–

यह उद्योग मुख्यता उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के विकसित देशों में केंद्रित है। चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, रूस व जर्मनी विश्व के प्रमुख लौह इस्पात उत्पादक देश है। इसके अतिरिक्त दक्षिणी कोरिया, यूक्रेन, ब्राजील, इटली व भारत भी लौह इस्पात का उत्पादन करते हैं।

प्रमुख देश निम्नानुसार हैं

वर्ष 2013 के अनुसार—

चीन जापान USA भारत रूस

वर्ष 2019 के अनुसार—

चीन भारत  जापान  USA

चीन–

यह विश्व का सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है यहां इस उद्योग के लिए पर्याप्त कच्चा माल उपलब्ध है। चीन के प्रमुख लौह इस्पात उत्पादक क्षेत्र निम्नानुसार है-

मंचूरिया क्षेत्र—

यह चीन का सबसे बड़ा क्षेत्र है

यहां अनसान व फुशुन प्रमुख

केंद्र हैं

उत्तरी चीन क्षेत्र–

यहां शांसी व शेंसी कोयला क्षेत्रों

के कारण कई केंद्र विकसित हुए हैं

जिनमें पाओटाओ  बीजिंग व टिटसिन मुख्य केन्द्र हैं 

यांग्टीसी घाटी क्षेत्र–

य़हां कच्चे माल व जल परिवहन सुविधा प्राप्त होने के कारण मुख्य केंद्र बुहान शंघाई, हैकाऊ व चुंगकिंग हैं।

जापान–

जापान विश्व का दूसरा बड़ा इस्पात उत्पादक देश है। जहां स्थानीय कच्चे माल की अनुपलब्धता के बावजूद अपनी उत्कृष्ट तकनीक, यातायात के साधनों, पर्याप्त पूंजी तथा सरकारी नीतियों के बल पर इस्पात उद्योग का काफी विकास हुआ है मुख्य क्षेत्र निम्नानुसार है

नागासाकी यावता क्षेत्र– उत्तरी क्यूशू द्वीप में स्थित यह क्षेत्र जापान का सबसे बड़ा लौह इस्पात उत्पादक क्षेत्र है। यहां मुख्य केंद्र यावाता, नागासाकी कोकूरा, मोजी, व  शिमोनोस्की हैं।

कोबे ओसाका क्षेत्र– यह हौंशु द्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है यहाँ मुख्य केंद्र कोबे, ओसाका हीरोहिता व सिखाई है।

टोक्यो योकोहमा क्षेत्र–  यह होंशु द्वीप के उत्तरी पूर्वी भाग में स्थित है यहां मुख्य केंद्र टोक्यो, याकोहामा व कावासाकी है।

मुरोरान क्षेत्र–  यह क्षेत्र होकैडो द्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। मुख्य केन्द्र मुरोरान, वैनिशी व इशीकारी है।

संयुक्त राज्य अमेरिका—

अपने संसाधनों के कारण कई दशकों तक विश्व में लौह इस्पात का प्रथम उत्पादक तथा उपभोक्ता रहा है। यहाँ इस उद्योग के स्थानीयकरण में कच्चे माल की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यहां के मुख्य लौह इस्पात क्षेत्र में निम्नलिखित हैं।

पिट्सबर्ग यंगस्टन क्षेत्र–

यह प्रदेश उत्तरी अप्लेसियन प्रदेश में ओहियो नदी की घाटी में स्थित है। यहां मुख्य केंद्र पीट्सबर्ग, यंगस्टन, जार्जटाउन, होमस्टेड हैं।

शिकागो गैरी क्षेत्र–

यह क्षेत्र मिशिगन झील के दक्षिण में स्थित है मुख्य केंद्र शिकागो, गैरी  व मिलवाऊकी हैं।

ईरी झील क्षेत्र–  झील के तट व समीपवर्ती भागों में इस क्षेत्र का विस्तार है। मुख्य केंद्र डेट्रायट, बफेलो, ईरी, क्लीवलैंड व टालेड़ा आदि हैं।

मध्य अटलांटिक क्षेत्र–

यह क्षेत्र मैसाचुसेट्स व मैरीलैंड राज्य में फैला हुआ है। मुख्य केंद्र स्पैरोज प्वाइंट, एलेन टाउन व  स्टीलटन आदि हैं।

अलाबामा क्षेत्र- अलबामा टैनिशी ,राज्य में विस्तृत है। मुख्य केंद्र अलाबामा  व बरमिघम आदि हैं।

पश्चिमी क्षेत्र– इस क्षेत्र के अधिकांश कारखाने छोटे व छितरे हुए हैं। मुख्य केंद्र प्युबलो, सैनफ्रांसिस्को व  लांस एंजिल्स।

रूस–

यह विश्व का चौथा बड़ा लौह इस्पात उत्पादक देश है। यहां के मुख्य केंद्र निम्न प्रकार से हैं—

युराल क्षेत्र–  यह सबसे पुराना व अग्रणी लोहा इस्पात उत्पादक क्षेत्र है। मुख्य केंद्र मैगनिटोगोस्क्र, निझनीतागिल आदि है।

कुजनेत्सक क्षेत्र–  यह क्षेत्र पश्चिमी साइबेरिया में अवस्थित है। मुख्य कुजनेत्सक व नोवाकुजनेत्सक हैं।

मध्यवर्ती क्षेत्र– क्षेत्र मास्को के समीपवर्ती भागो में स्थित है। प्रमुख केंद्र टुला, लिपेस्टक, मास्को लेनिनग्राद,व  गोर्की हैं।

जर्मनी—डूइसबर्ग  डोरटमुंड     

युक्रेन—क्रिबाइराग, दोनेत्सक

ब्रिटेन—ग्लासगो, शैफील्ड, लंकाशायर

भारत- भारत के प्रमुख लौह इस्पात केंन्द्र निम्नलिखित हैं-

  • जमशेदपुर—झारखण्ड       
  • दूर्गापुर- पं बगाल
  • राउरकेला- उडीसा
  • भिलाई- छत्तीसगढ
  • बोकारो- झारखण्ड
  • सलेम- तमिलनाडू
  • विशाखापट्नम- आंन्ध्रप्रदेश
  • भद्रावती- कर्नाटक

सूती वस्त्र उद्योग

यह मानव का सबसे प्राचीन उद्योग है। इसका आरम्भ तो कुटीर व लघु उद्योग के रूप में हुआ था। आधुनिक वस्त्र निर्माण का जन्म औद्योगिक क्रांति के दौरान ब्रिटेन में हुआ। वस्त्र उद्योग के अन्तर्गत निम्न उद्योग शामिल किये गये हैं।          

  • सूती वस्त्र
  • ऊनी वस्त्र
  • रेशमी वस्त्र
  • पटसन या जूट

सूती वस्त्र उद्योग– यह यत्र उद्योगों में सबसे महत्वपूर्ण उद्योग है।

आवश्यक कारक–

  • कच्चे माल के रूप में कपास
  • चालक शक्ति के रूप में कोयला व जल विपुत कार्य करने के लिए प्रचूर सस्ता अन
  • आर्द जलवायु
  • बड़ी मात्रा में शुद्ध जल
  • पर्याप्त पूँजी
  • विस्तृत बाजार
  • सरकारी प्रोत्साहन

प्रमुख उत्पादक—

  • चीन 26.4%
  • भारत 21.0%
  • संयुक्त राज्य अमेरिका 14.7%

चीन-  चीन का सूती वस्त्र उत्यादन में प्रथम स्थान है। यहाँ मुख्य केन्द्र- शंघाई, केन्टन, सिंगटाओं, टिटसिन, शांतुग आदि हैं।

भारत- भारत सूती वस्त्र उत्पादन में चीन के बाद दूसरा स्थान रखता है।

यहां मुख्य केन्द्र निम्नलिखित है—

  • मुम्बई,
  • अहमदाबाद,
  • शोलापुर,
  • नासिक,
  • सूरत,
  • बडोदा,
  • नागपुर,
  • इन्दौर
  • कोलकाता,
  • दिल्ली,
  • कानपुर,
  • भीलवाड़ा,
  • व्यावर
  • पाली,
  • कोयम्बटूर

संयुक्त राज्य अमेरिका- यहाँ मुख्य केन्द्र -न्यु इलैण्ड,  मध्य अटलांटिक व दक्षिण अप्लेशियन आदि हैं।

ऊनी वस्त्र उद्योग- सूती वस्त्र के बाद इसका विश्व में दूसरा स्थान है। मात्रा की दृष्टि से विश्व में ऊनी वस्त्र उद्योग, सूती वस्त्र का 10% से 15% भाग है। परंतु मूल्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। विश्व का दो तिहाई ऊनी वस्त्र उद्योग यूरोप में केंद्रित है। मुख्य उत्पादक देश- रूस, चीन, जापान, जर्मनी, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, रोमानिया, पोलैंड ग्रेट-ब्रिटेन आदि हैं।

रेशमी या उद्योग–

इस उद्योग का विकास सर्वप्रथम चीन में कुटीर उद्योग के रूप में हुआ था। रेशमी वस्त्र प्रारंभ से ही धनी लोगों विलास की वस्तु रहा है। प्राकृतिक रेशम बायोक्जिमू नामक कीडे से निकले लसलसे पदार्थ से प्राप्त होता है। यह कीट शहतूत के पत्तों पर पाला जाता है।

रेशम प्राप्त करने के चरण–

1 कोयों का उत्पादन

2 कोयो से रेशमी धागा लपेटना

3. रेशमी वस्त्रों की बुनाई।

विश्व में प्राकृतिक रेशम का उत्पादन करने वाले देशों में जापान लगभग 50%,चीन 28% रूस 5% व भारत 6% स्थान रखते हैं और इसमे वस्र काफी महंगे होते हैं।

प्राचीन समय में चीन का रेशम मार्ग प्रसिद्ध था। इस मार्ग से यूरोप के देशों तक निर्यात किया जाता था। यहां के प्रमुख केंद्र चाई क्यांगचाउ आदि है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में रेशमी वस्तुओं के उत्पादन में पेंसिलवेनिया राज्य सबसे आगे है। पैटरसन नगर यहां का सबसे बड़ा रेशमी वस्त्र उत्पादक नगर है जिसे अमेरिका का रेशम नगर भी कहते हैं। फ्रांस की रोन घाटी में स्थित लियोस नगर रेशमी वस्त्र उत्पादन करने वाला प्रमुख केंद्र है। भारत में कोलकाता मैसूर बेंगलुरु चेन्नई प्रमुख केन्द्र हैं।

जूट वस्त्र उद्योग- इसका सम्बन्ध टाट. बोरी और जूट के कपड़े, मोटी दरियाँ आदि के उत्पादन से है। जूट की कृषि में भारत और बांग्लादेश अग्रणी हैं। जहाँ ब्रह्मपुत्र घाटी व गंगा के डेल्टाई भागों में इसकी खेती की जाती है।

मुख्य उत्पादक देश-  भारत, बांग्लादेश, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, बेल्जियम स्पेन, स्वीडन, जापान, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका भारत व बांग्लादेश जूट से बनी वस्तुओं के प्रमुख निर्यातक देश हैं।

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